Paramavatar | Hindi Rap Song | AI Video | Goosebumps Guaranteed ???? | Lucke
Hello guys, we are back again with another powerful, energetic, spiritual Hindi rap song based on paramavatar lord shree krishna. This song portrays all the dashavatars of Lord Vishnu described by the paramavatar Shree Krishna and shows his superiority and how Lord Vishnu takes different avatars for the establishment of dharma and to protect his devotees. So, sit back and bring your headphones or earbuds to listen to this masterpiece.
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Main Artist/ Rap and lyrics by: Lucke
instagram.com/iamlucke_
Music and Mix Mastered By: Mitwan Soni
instagram.com/mitwan_soni
Extra Lead vocals by: Rohit Bhushan Mishra
instagram.com/rohitbhushanmishra
Chorus Vocals by: Anurag Owhal & Mitwan Soni
instagram.com/indori_anurag_owhal
Lyrics:
Rap verse - 1
जब श्रृष्टि को रचने वाले ब्रह्माजी ने विश्राम किया
हयग्रीव ने चारों (४) वेद को समुद्र में कहीं छिपा दिया।
जब सभी वेद कही मिले नहीं तब मैंने ही संज्ञान लिया
मत्स्य के ही रूप में , मैंने प्रथम अवतार लिया।।
तब मनु को मैंने ज्ञान दिया सभी वेद विद्या उसे सौंप दिया
भीषण प्रलय आने को थी हयग्रीव को मैंने रौंद दिया।
फिर कूर्म बनके मंथन में, मंद्राचल का मैंने भार लिया_
देव दैत्य की समस्या का सबका समाधान किया।।
मो हिनी रूप लेके मैंने अमृत को सब में बाँट दिया
जब असुर छिपे देवों के बीच तब उनका सर भी काट दिया।
जब हिरण्याक्ष ने धरा को था छिपा दिया महासागर में
तब दांतों पर अपने रखकर किया धरा उजागर मैं।।
मैंने वराह अवतार लिया , संसार कष्टों से तार दिया
फिर मेरे ही हाथों से मैंने हिरण्याक्ष का नाश किया।
अब बारी हिरण्यकश्यप की जिसे मिला ऐसा वरदान था
वरदान के चलते पापी ने किया अधीन संसार था।
शक्ति भी इतनी प्रबल जिसके कारण उसे अहंकार था
सभी देव हुए भयभीत उसने मचा दिया हाहाकार था।।
उसे मार सके ना दिन में ना ही मार सके कोई रात मैं
ना मारता भीतर बाहर में ना धरती ना आकाश में।
ना मारता अस्त्र शस्त्र से ना मानव उसको मार सके
विपत्ति बड़ी थी सामने कैसे उसका संघार करे।।
वरदान जो ऐसा था उसको के कभी ना कोई मार सके
पर मृत्यु है जो अटल सत्य कोई कैसे उसको टाल सके।
मैंने नरसिंह अवतार लिया स्तंभ चीर हुंकार किया
ना अस्त्र से ना शस्त्र से नाखून से छाती फाड़ दिया।।
अधर्म का विनाश किया फिर सत्य का आगाज किया
ऐसा करके मैंने फिरसे धर्म का विस्तार किया।।
फिर दैत्यराज बलि ने जब सम्पूर्ण स्वर्ग अधिकार किया
सभी देवगण चिंतित थे तब मैंने वामन अवतार लिया।
अदिति के गर्भ से जन्मां मैं , बौने ब्राह्मण का रूप लिया
और तीन पग भूखंड का टुकड़ा राजा बलि से माँग लिया।।
फिर बौने से उस ब्राह्मण ने अपना रूप विस्तार किया
इक पग में नापा धरती को दूजे में स्वर्ग को नाप लिया।
जब शेष बचा ना बलि पे कुछ तब सिर को उसने सौंप दिया
पग रखकर सिर पर मैंने उसे पाताल लोक में झोंक दिया।।
और ऐसा करके मैंने फिरसे धर्म का विस्तार किया।
Rap Verse - 2
मैं हूँ वो ही जो इस श्रृष्टि के हर अंश में दिखता हूँ
मैं हूँ वही जो अंधकार में चंद्र जैसा चमकता हूँ ।
मैं सूर्य की किरण बनके पृथ्वी को रोशन करता हूँ
मैं हूँ वो ही जो फूलो में बनके सुघन्ध महकता हूँ।।
मैं हूँ वो ही शक्ति जिसने फरसे से रण आग़ाज़ किया
सम्पूर्ण धरा से क्षत्रियों का इक्कीस बार विनाश किया।
मैं हूँ वो ही शक्ति जिसने मर्यादित होके कार्य किया
दुष्ट रावण का वध करने को , रामचंद्र अवतार लिया।।
अर्जुन था विचलित रण में जब गांडीव हाथ से त्याग दिया
तब मार्गदर्शन देने को मैंने गीता का ज्ञान दिया।
नाग कालिया के फ़न पर मैंने ही तांडव नाच किया
मैंने ही उठाया गोवर्धन और यूँ सबका कल्याण किया।।
मैंने ही दुष्ट दुराचारी दुर्योधन के हर प्राण लिए
मैंने ही दुष्ट अहंकारी उस कंस के बाँह उखाड़ दिये।
मैंने ही देह जरासंध की दो भाग के मध्य फाड़ दिये_
धर्म युक्त करने धरा को मैंने कई अवतार लिए।।
इक क्षण मैं मैंने कई बार लाखों के मस्तक काट दिये
पर वर के चलते शिशुपाल के कटु वचन भी माफ़ किए।
जब मर्यादा वो लांघ गया सुदर्शन को आदेश किया
धड़ से वंचित किया मैंने फिर चक्र से मस्तक काट दिया।।
मैंने ही सारे काज किए इस धरा पे धर्म को लाने को
कई असुरों का संहार किया श्रृष्टि पे धर्म बचाने को।
मैं युगों युगों में आऊँगा संसार को राह दिखाने को
सभी मौन थे सभा में तब मैं आया लाज बचाने को।।
संपूर्ण श्रृष्टि पर सारी हलचल का मैं ही कारण हूँ
मैं शेषनाग विराजमान मैं परब्रह्म नारायण हूँ।
मैं कलकल बहती नादिया हूँ मैं प्रलय का आभास भी हूँ
मैं पर्वत की हूँ गर्जन भी , हर प्राणी का विश्वास भी हूँ।।
मीरा के प्याले में प्यारा सा अमृत का वो पान भी हूँ
राधा के नूपुरो में बजती मनमोहक सी झंकार भी हूँ।
माखन की चोरी करने वाला नटखट सुंदर श्याम भी हूँ
मुख में माँ को ब्रह्मांड दिखाया उस माँ की पुकार भी हूँ।।
संपूर्ण जगत की धड़कन मैं और में ही सबकी श्वास भी हूँ
जीवन में सबके लेख लिखुं , मैं ही ले लेता प्राण भी हूँ।
वरदान श्राप सब मुझ से ही मैं ही वेदों का ज्ञान भी हूँ
जो ऋषि मुनि है लीन ध्यान में उन सबका मैं ध्यान भी हूँ।।
सुदर्शन डालके उँगली में , मैंने ही नरसंहार किया
कई बार हुआ मैं अवतरित मैंने ही जनकल्याण किया।
धर्म के रक्षण हेतु मैं तो सभी युगों में आऊँगा
अधर्म तोड़ेगा मर्यादा तो फिर प्रकट हो जाऊँगा ।।
कलयुग में मैं कलि काल बनके कल्कि आ जाऊँगा
मैं 7 चिरंजीवी के साथ, शमशीर हाथ देवदत्त सवार।
सिर धरे मुकुट इस धरा को फिरसे पाप मुक्त कर जाऊँगा
समाप्त करके कलयुग को फिरसे सतयुग ले आऊँगा।।
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जब श्रृष्टि को रचने वाले ब्रह्माजी ने विश्राम किया
हयग्रीव ने चारों (४) वेद को समुद्र में कहीं छिपा दिया।
जब सभी वेद कही मिले नहीं तब मैंने ही संज्ञान लिया
मत्स्य के ही रूप में , मैंने प्रथम अवतार लिया।।
तब मनु को मैंने ज्ञान दिया सभी वेद विद्या उसे सौंप दिया
भीषण प्रलय आने को थी हयग्रीव को मैंने रौंद दिया।
फिर कूर्म बनके मंथन में, मंद्राचल का मैंने भार लिया_
देव दैत्य की समस्या का सबका समाधान किया।।
मो हिनी रूप लेके मैंने अमृत को सब में बाँट दिया
जब असुर छिपे देवों के बीच तब उनका सर भी काट दिया।
जब हिरण्याक्ष ने धरा को था छिपा दिया महासागर में
तब दांतों पर अपने रखकर किया धरा उजागर मैं।।
मैंने वराह अवतार लिया , संसार कष्टों से तार दिया
फिर मेरे ही हाथों से मैंने हिरण्याक्ष का नाश किया।
अब बारी हिरण्यकश्यप की जिसे मिला ऐसा वरदान था
वरदान के चलते पापी ने किया अधीन संसार था।
शक्ति भी इतनी प्रबल जिसके कारण उसे अहंकार था
सभी देव हुए भयभीत उसने मचा दिया हाहाकार था।।
उसे मार सके ना दिन में ना ही मार सके कोई रात मैं
ना मारता भीतर बाहर में ना धरती ना आकाश में।
ना मारता अस्त्र शस्त्र से ना मानव उसको मार सके
विपत्ति बड़ी थी सामने कैसे उसका संघार करे।।
वरदान जो ऐसा था उसको के कभी ना कोई मार सके
पर मृत्यु है जो अटल सत्य कोई कैसे उसको टाल सके।
मैंने नरसिंह अवतार लिया स्तंभ चीर हुंकार किया
ना अस्त्र से ना शस्त्र से नाखून से छाती फाड़ दिया।।
अधर्म का विनाश किया फिर सत्य का आगाज किया
ऐसा करके मैंने फिरसे धर्म का विस्तार किया।।
फिर दैत्यराज बलि ने जब सम्पूर्ण स्वर्ग अधिकार किया
सभी देवगण चिंतित थे तब मैंने वामन अवतार लिया।
अदिति के गर्भ से जन्मां मैं , बौने ब्राह्मण का रूप लिया
और तीन पग भूखंड का टुकड़ा राजा बलि से माँग लिया।।
फिर बौने से उस ब्राह्मण ने अपना रूप विस्तार किया
इक पग में नापा धरती को दूजे में स्वर्ग को नाप लिया।
जब शेष बचा ना बलि पे कुछ तब सिर को उसने सौंप दिया
पग रखकर सिर पर मैंने उसे पाताल लोक में झोंक दिया।।
और ऐसा करके मैंने फिरसे धर्म का विस्तार किया।
Rap Verse - 2
मैं हूँ वो ही जो इस श्रृष्टि के हर अंश में दिखता हूँ
मैं हूँ वही जो अंधकार में चंद्र जैसा चमकता हूँ ।
मैं सूर्य की किरण बनके पृथ्वी को रोशन करता हूँ
मैं हूँ वो ही जो फूलो में बनके सुघन्ध महकता हूँ।।
मैं हूँ वो ही शक्ति जिसने फरसे से रण आग़ाज़ किया
सम्पूर्ण धरा से क्षत्रियों का इक्कीस बार विनाश किया।
मैं हूँ वो ही शक्ति जिसने मर्यादित होके कार्य किया
दुष्ट रावण का वध करने को , रामचंद्र अवतार लिया।।
अर्जुन था विचलित रण में जब गांडीव हाथ से त्याग दिया
तब मार्गदर्शन देने को मैंने गीता का ज्ञान दिया।
नाग कालिया के फ़न पर मैंने ही तांडव नाच किया
मैंने ही उठाया गोवर्धन और यूँ सबका कल्याण किया।।
मैंने ही दुष्ट दुराचारी दुर्योधन के हर प्राण लिए
मैंने ही दुष्ट अहंकारी उस कंस के बाँह उखाड़ दिये।
मैंने ही देह जरासंध की दो भाग के मध्य फाड़ दिये_
धर्म युक्त करने धरा को मैंने कई अवतार लिए।।
इक क्षण मैं मैंने कई बार लाखों के मस्तक काट दिये
पर वर के चलते शिशुपाल के कटु वचन भी माफ़ किए।
जब मर्यादा वो लांघ गया सुदर्शन को आदेश किया
धड़ से वंचित किया मैंने फिर चक्र से मस्तक काट दिया।।
मैंने ही सारे काज किए इस धरा पे धर्म को लाने को
कई असुरों का संहार किया श्रृष्टि पे धर्म बचाने को।
मैं युगों युगों में आऊँगा संसार को राह दिखाने को
सभी मौन थे सभा में तब मैं आया लाज बचाने को।।
संपूर्ण श्रृष्टि पर सारी हलचल का मैं ही कारण हूँ
मैं शेषनाग विराजमान मैं परब्रह्म नारायण हूँ।
मैं कलकल बहती नादिया हूँ मैं प्रलय का आभास भी हूँ
मैं पर्वत की हूँ गर्जन भी , हर प्राणी का विश्वास भी हूँ।।
मीरा के प्याले में प्यारा सा अमृत का वो पान भी हूँ
राधा के नूपुरो में बजती मनमोहक सी झंकार भी हूँ।
माखन की चोरी करने वाला नटखट सुंदर श्याम भी हूँ
मुख में माँ को ब्रह्मांड दिखाया उस माँ की पुकार भी हूँ।।
संपूर्ण जगत की धड़कन मैं और में ही सबकी श्वास भी हूँ
जीवन में सबके लेख लिखुं , मैं ही ले लेता प्राण भी हूँ।
वरदान श्राप सब मुझ से ही मैं ही वेदों का ज्ञान भी हूँ
जो ऋषि मुनि है लीन ध्यान में उन सबका मैं ध्यान भी हूँ।।
सुदर्शन डालके उँगली में , मैंने ही नरसंहार किया
कई बार हुआ मैं अवतरित मैंने ही जनकल्याण किया।
धर्म के रक्षण हेतु मैं तो सभी युगों में आऊँगा
अधर्म तोड़ेगा मर्यादा तो फिर प्रकट हो जाऊँगा ।।
कलयुग में मैं कलि काल बनके कल्कि आ जाऊँगा
मैं 7 चिरंजीवी के साथ, शमशीर हाथ देवदत्त सवार।
सिर धरे मुकुट इस धरा को फिरसे पाप मुक्त कर जाऊँगा
समाप्त करके कलयुग को फिरसे सतयुग ले आऊँगा।।
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- Category
- Rap

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